शादी के सात वचन हिंदी में | Shadi Ke Saat Vachan

Shaadi Ke 7 Vachan Hindi Me shaadi 99

शादी 99 पोर्टल पर हम आपको शादी के लिए बायोडाटा के साथ साथ अन्य उपयोगी जानकारी भी देते रहते हैं | इसी सिलसिले में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि हिदू विवाह में शादी के समय 7 फेरे लिए जाते हैं और उन फेरों के साथ 7 वचन भी लिए जाते हैं | आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कौन-कौन से सात वचन दिए जाते हैं सात फेरों के दौरान हिंदू विवाह में एवं क्या है इनका महत्व |

धार्मिक एवं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सनातन (हिंदू)धर्म में सोलह संस्कारों का विधान है। जिनके अपने-अपने महत्व है। इसी के संदर्भ में आज हम इस लेख में विवाह संस्कार जो कि 16 संस्कारों में से एक संस्कार है। एवं यह राया सभी लोगों के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण संस्कार है। तो आज के इस लेख में विवाह संस्कार में दूल्हा दुल्हन के द्वारा लिए जाने वाले अग्नि के सात फेरे का क्या महत्व है इसके विषय में चर्चा करेंगे। एवं यह जानेंगे कि यह फेरे क्यों लिए जाते हैं तो आइए जानते हैं कि हिंदू धर्म में क्या है विवाह के इन सात फेरों का अर्थ।

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क्यों लिए जाते हैं सात फेरे:-

हिंदू धर्म में होने वाले विवाहों में अनेकों अनेक रस्में निभाई जाती है। जिन सभी का बड़ा ही महत्व है मानव जीवन में। अन्य धर्मों के अनुसार विवाह मात्र वर वधु के बीच का एक समझौता होता है जिसके द्वारा वह एक दूसरे से जुड़े होते हैं। एवं जब चाहें वे स्वेच्छा से अपने इस जुड़ाव को अपने संबंध को समाप्त भी कर सकते हैं। किंतु सनातनी संस्कृति में विवाह ना केवल वर वधु के बीच का एक पवित्र संबंध होता है। जिसे वे सात जन्मों तक निभाने का वचन देते हैं। बल्कि किसी एक विवाह के होने से दो परिवार आपस में जुड़ जाते हैं। इसमें लिए जाने वाले अग्नि के सात फेरे वर वधु के बीच आदान प्रदान किए जाने वाले सात वचनों के प्रतीक हैं। जिसके अनुसार अग्नि देवता को साक्षी मानते हुए वर अपनी दुल्हन को सात वचन देते हैं। एवं इन सातों वचनों में जीवन की ऐसे गुढ मंत्र या बातें छुपी है जिन का अर्थ है यदि समझ कर उसके अनुसार गृहस्थी में व्यवहार किया जाए तो। वर्तमान समय में लोगों के गृहस्थ जीवन में आने वाली अनेकों कठिनाइयों समस्याएं समाप्त हो सकती हैं। आइए उन सातों फेरों को बारी-बारी से जानते हैं एवं समझते हैं उनके अर्थों को।

1.तीर्थ व्रतोद्यापन यज्ञ कर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्याः

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी।।

विवाह का प्रथम वचन जिसमें कन्या अपने होने वाले हैं वर से वचन मांगती है। कि अब से किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में यज्ञ व्रत उद्यापन इत्यादि में वह उसे भी सहभागिनी बनाएंगे। और जिस प्रकार आज विवाह के वक्त वह उसके बायीं ओर स्थित है। उसी प्रकार सभी यज्ञ आदि कर्मों में उसे अपनी बायीं ओर स्थान देंगे। तो वह उनकी अर्धांगिनी बनना स्वीकार करती हैं।
इसी कारण से विवाहित पुरुष किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में अकेले नहीं बैठते। पत्नी के बिना किए जाने वाले अनुष्ठान को पूर्ण भी नहीं माना जाता। और ना ही अनुष्ठान का पूर्ण लाभ प्राप्त होता है।

2. “पूज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेस्वभक्तो निजकर्म कुर्याः,
वामांगवायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचन द्वितीयं।।”

द्वितीय वचन में वधू अपने वर से यह मांगती है कि जिस प्रकार अपने माता पिता को आप सम्मान देते हैं। अब से उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करेंगे। एवं गृहस्थ धर्म की मर्यादा का पालन करते हुए ईश्वर की भक्ति के साथ जीवन व्यतीत करते हैं।तो मैं आपके वामांग में आने (अर्धांगिनी बनने) को तैयार हूं।

3.जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात,
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं त्रितियं।।

तीसरे वचन में दुल्हन वर से यह वचन मांगती है कि वे जीवन की तीनों अवस्थाओं(युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था) में उसका पालन करने को तैयार हैं ।तभी वो उनकी अर्धांगिनी बनना स्वीकार करती हैं।

4. कुटुंबसर्वपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्याः,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचन चतुर्थं।।

एवं दुल्हन अपने वर से चौथे वचन में मांगती है कि अब तक तो आप गृहस्ती के जिम्मेदारियों से मुक्त थे। किंतु अब आप जबकि परिणय बंधन में बंधने जा रहे हैं। तो अब से गृहस्थी की सारी जिम्मेदारियों को निभाएंगे ऐसा वचन देते हैं। तो मैं आपकी अर्धांगिनी बनना स्वीकार करती हूं।

5.स्वसधकर्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मंत्रयेथा,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति ब्रूते वचः पंच मंत्रकन्या।।

आज मैं वचन में कन्या दूल्हे से यह वचन मांगती है कि गृह कार्य, अन्य पूजा अनुष्ठान, अथवा किसी समारोह में धन के व्यय करने से पूर्व आप मेरी भी सलाह लें। एवं मुझे ऐसे निर्णय में सहचरी बनाएं। तो मुझे आपकी अर्धांगिनी बनना स्वीकार है।

6. न मेपानमं सविधे सखीनां धूतं नवा दुर्व्यसनं भंजश्चेत,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम।।

छठे वचन में वधु दूल्हे से कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्त्रियों के संघ बैठी हूं। उनके समक्ष आप मुझे अपमानित नहीं करेंगे। एवं आप द् यूत ( जुआ ) आदि बुरी लतों से निर्लिप्त रहेंगे। तो मैं आपके बायीं ओर स्थित होने को तैयार हूं।

7. परस्त्रियं मात्रीसमानं समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कांत कुर्या,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति ब्रूते वचः सप्तम मंत्र कन्या।।

सातवा एवं आखरी वचन वधू यह मांगती है कि आप पर स्त्रियों को मां की भांति समझेंगे। एवं हमारे दांपत्य जीवन में अन्य किसी तीसरे को नहीं आने देंगे। यदि आप ऐसा वचन दे तो मुझे आपकी वामांग में स्थापित होना(अर्धांगिनी बनना) स्वीकार है।

निष्कर्ष

आज की पोस्ट में हमने आपको हिन्दू शादी से सम्बंधित एक बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी है | आज की पोस्ट में हमने आपको बताया है कि हिन्दू शादी के समय जब फेरे लिए जाते हैं तो सात वचन भी लिए जाते हैं | यह साथ वचन क्या होते हैं इसकी जानकारी आपको दी गई है | आशा करते हैं आपको यह जानकारी पसंद आई होगी | अगर आपके मन में कोई सवाल हो तो हमें जरुर लिखें |


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Posted by: Shaadi99